क्या कहूं शायद इसलिए मन उदास है....।







नई सुबह है मौसम सुहावना है पर मन उदास है...।
है किसी की कमी,शायद इसलिए मन उदास है..।
कोई चली गयी सब कुछ छोड़ के शायद आज फिर उसकी तलाश है।
क्या कहूं शायद इसलिए मन उदास है....।

मैनें रोका उसे, समझया भी उसे पर पर उसको भी शायद किसी की तलाश है..।.
    क्या कहूं शायद इसलिए मन उदास है....।

जगह जगह ढ़ूढ़ा उसे मैनें...पर नहीं मिली वो मुझे..।
ना जाने कहां उसका अब वास है...।
   शायद इसलिए मन उदास है....।

सबसे करीब है वो मेरे...मेरे दिल पर उसका ही राज है..।
 क्या कहूं शायद इसलिए मन उदास है....।

भुल गयी है शायद वो मुझे.. इसलिए पहचाना नही की, मेरी ही ये आवाज है...।
सुनकर भी बनी अनजानी कहा ये किसी किसी अजनबी की आवाज है..।
भर आई आंखे मेरी ..अरे  खुदगर्ज मेरी ये दर्द भरी पुकार है..।
क्या कहूं शायद इसलिए मन उदास है....।

चला जाऊँगा एक दिन मैं ये सब छोड़ कर...मेरे लिए ये बकवास है...।
ढूंढेगी दर दर.. झटकेगी कहां कहां पर अब नहीं यहां मेरा निवास है..।
     क्या कहूं शायद इसलिए मन उदास है....।

          -केशव कुमार मिश्रा

टिप्पणियाँ

  1. केशव जी आपका बहुत-बहुत धन्य वाद, आपने नरेला की ज़िंदगी मे प्रवेश कर लिया

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